Krishna Janmashtami – भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव
Krishna Janmasthami in Hindi – भक्त लोग, जो जन्माष्टमी का व्रत करते हैं, जन्माष्टमी के एक दिन पूर्व केवल एक ही समय भोजन करते हैं। व्रत वाले दिन, स्नान आदि से निवृत्त होने के पश्चात, भक्त लोग पूरे दिन उपवास रखकर, अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के समाप्त होने के पश्चात व्रत कर पारण का संकल्प लेते हैं। कुछ कृष्ण-भक्त मात्र रोहिणी नक्षत्र अथवा मात्र अष्टमी तिथि के पश्चात व्रत का पारण कर लेते हैं। संकल्प प्रातःकाल के समय लिया जाता है और संकल्प के साथ ही अहोरात्र का व्रत प्रारम्भ हो जाता है।
जन्माष्टमी के दिन, श्री कृष्ण पूजा निशीथ समय पर की जाती है। वैदिक समय गणना के अनुसार निशीथ मध्यरात्रि का समय होता है। निशीथ समय पर भक्त लोग श्री बालकृष्ण की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। विस्तृत विधि-विधान पूजा में षोडशोपचार पूजा के सभी सोलह (16) चरण सम्मिलित होते हैं। जन्माष्टमी की विस्तृत पूजा विधि, वैदिक मन्त्रों के साथ जन्माष्टमी पूजा विधि पृष्ठ पर उपलब्ध है।
कृष्ण जन्माष्टमी पर व्रत के नियम
एकादशी उपवास के दौरान पालन किये जाने वाले सभी नियम जन्माष्टमी उपवास के दौरान भी पालन किये जाने चाहिये। अतः जन्माष्टमी के व्रत के दौरान किसी भी प्रकार के अन्न का ग्रहण नहीं करना चाहिये। जन्माष्टमी का व्रत अगले दिन सूर्योदय के बाद एक निश्चित समय पर तोड़ा जाता है जिसे जन्माष्टमी के पारण समय से जाना जाता है।
जन्माष्टमी का पारण सूर्योदय के पश्चात अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने के बाद किया जाना चाहिये। यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्यास्त तक समाप्त नहीं होते तो पारण किसी एक के समाप्त होने के पश्चात किया जा सकता है। यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में से कोई भी सूर्यास्त तक समाप्त नहीं होता तब जन्माष्टमी का व्रत दिन के समय नहीं तोड़ा जा सकता। ऐसी स्थिति में व्रती को किसी एक के समाप्त होने के बाद ही व्रत तोड़ना चाहिये। अतः अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के अन्त समय के आधार पर कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत दो सम्पूर्ण दिनों तक प्रचलित हो सकता है। हिन्दु ग्रन्थ धर्मसिन्धु के अनुसार, जो श्रद्धालु-जन लगातार दो दिनों तक व्रत करने में समर्थ नहीं है, वो जन्माष्टमी के अगले दिन ही सूर्योदय के पश्चात व्रत को तोड़ सकते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी को कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी, अष्टमी रोहिणी, श्रीकृष्ण जयन्ती और श्री जयन्ती के नाम से भी जाना जाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी के दो अलग-अलग दिनों के विषय में
अधिकतर कृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिनों पर हो जाती है। जब-जब ऐसा होता है, तब पहले दिन वाली जन्माष्टमी स्मार्त सम्प्रदाय के लोगो के लिये और दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव सम्प्रदाय के लोगो के लिये होती है।
प्रायः उत्तर भारत में श्रद्धालु स्मार्त और वैष्णव जन्माष्टमी का भेद नहीं करते और दोनों सम्प्रदाय जन्माष्टमी एक ही दिन मनाते हैं। हमारे विचार में यह सर्वसम्मति इस्कॉन संस्थान की वजह से है। “कृष्ण चेतना के लिए अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय”संस्था, जिसे इस्कॉन के नाम से अच्छे से जाना जाता है, वैष्णव परम्पराओं और सिद्धान्तों के आधार पर निर्माणित की गयी है। अतः इस्कॉन के ज्यादातर अनुयायी वैष्णव सम्प्रदाय के लोग होते हैं।
इस्कॉन संस्था सर्वाधिक व्यावसायिक और वैश्विक धार्मिक संस्थानों में से एक है जो इस्कॉन संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये अच्छा-खासा धन और संसाधन खर्च करती है। अतः इस्कॉन के व्यावसायिक प्रभाव और विज्ञापिता की वजह से अधिकतर श्रद्धालु-जन इस्कॉन द्वारा चयनित जन्माष्टमी को मनाते हैं। जो श्रद्धालु वैष्णव धर्म के अनुयायी नहीं हैं वो इस बात से अनभिज्ञ हैं कि इस्कॉन की परम्पराएँ भिन्न होती है और जन्माष्टमी उत्सव मनाने का सबसे उपयुक्त दिन इस्कॉन से अलग भी हो सकता है।
स्मार्त अनुयायी, जो स्मार्त और वैष्णव सम्प्रदाय के अन्तर को जानते हैं, वे जन्माष्टमी व्रत के लिये इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन का अनुगमन नहीं करते हैं। दुर्भाग्यवश ब्रज क्षेत्र, मथुरा और वृन्दावन में, इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन का सर्वसम्मति से अनुगमन किया जाता है। श्रद्धालु जो दूसरों को देखकर जन्माष्टमी के दिन का अनुसरण करते हैं वो इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन को ही उपयुक्त मानते हैं।
लोग जो वैष्णव धर्म के अनुयायी नहीं होते हैं, वो स्मार्त धर्म के अनुयायी होते हैं। स्मार्त अनुयायियों के लिये, हिन्दु ग्रन्थ धर्मसिन्धु और निर्णयसिन्धु में, जन्माष्टमी के दिन को निर्धारित करने के लिये स्पष्ट नियम हैं। श्रद्धालु जो वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी नहीं हैं, उनको जन्माष्टमी के दिन का निर्णय हिन्दु ग्रन्थ में बताये गये नियमों के आधार पर करना चाहिये। इस अन्तर को समझने के लिए एकादशी उपवास एक अच्छा उदाहरण है।
एकादशी के व्रत को करने के लिये, स्मार्त और वैष्णव सम्प्रदायों के अलग-अलग नियम होते हैं। ज्यादातर श्रद्धालु एकादशी के अलग-अलग नियमों के बारे में जानते हैं परन्तु जन्माष्टमी के अलग-अलग नियमों से अनभिज्ञ होते हैं। अलग-अलग नियमों की वजह से, न केवल एकादशी के दिनों बल्कि जन्माष्टमी और राम नवमी के दिनों में एक दिन का अन्तर होता है।
वैष्णव धर्म को मानने वाले लोग अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र को प्राथमिकता देते हैं और वे कभी सप्तमी तिथि के दिन जन्माष्टमी नहीं मनाते हैं। वैष्णव नियमों के अनुसार हिन्दु कैलेण्डर में जन्माष्टमी का दिन अष्टमी अथवा नवमी तिथि पर ही पड़ता है।
जन्माष्टमी का दिन तय करने के लिये, स्मार्त धर्म द्वारा अनुगमन किये जाने वाले नियम अधिक जटिल होते हैं। इन नियमों में निशिता काल को, जो कि हिन्दु अर्धरात्रि का समय है, को प्राथमिकता दी जाती है। जिस दिन अष्टमी तिथि निशिता काल के समय व्याप्त होती है, उस दिन को प्राथमिकता दी जाती है। इन नियमों में रोहिणी नक्षत्र को सम्मिलित करने के लिये कुछ और नियम जोड़े जाते हैं। जन्माष्टमी के दिन का अन्तिम निर्धारण निशिता काल के समय, अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के शुभ संयोजन, के आधार पर किया जाता है। स्मार्त नियमों के अनुसार हिन्दु कैलेण्डर में जन्माष्टमी का दिन हमेशा सप्तमी अथवा अष्टमी तिथि के दिन पड़ता है।
कृष्ण जन्माष्टमी 2024 (Krishna Janmashtami in Hindi)
त्यौहार का नाम | जन्माष्टमी |
अन्य नाम | गोकुलाष्टमी |
तिथी | श्रावण मास की पुर्णिमा के बाद आठवे दिन |
तारीख 2024 | 26 अगस्त |
इष्ट भगवन | श्री कृष्ण |
विशेष | कृष्ण जन्मोत्सव |
त्यौहार का प्रकार | धार्मिक |
धर्म | हिन्दू |
जन्माष्टमी कब मनाई जाती हैं (Krishna Janmashtami Date)
जन्माष्टमी हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्रावण मास की पुर्णिमा के बाद आठवे दिन मनाई जाती है, या यह भी कह सकते है कि भाई बहन के सबसे बड़े त्यौहार रक्षाबंधन के बाद ठीक आठवे दिन कृष्ण जन्म अष्टमी मनाई जाती है .
अष्टमी तिथि व रोहिणी नक्षत्र कब से कब तक: अष्टमी तिथि 26 अगस्त को सुबह 03 बजकर 39 मिनट से प्रारंभ होगी और 27 अगस्त को सुबह 02 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी। रोहिणी नक्षत्र 26 अगस्त को दोपहर 03 बजकर 55 मिनट पर लगेगा और 27 अगस्त को दोपहर 03 बजकर 38 मिनट पर समाप्त होगा।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजन मुहूर्त 2024: श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन निशिता काल में पूजा का समय – 12:00 पी एम से 12:44 ए एम, अगस्त 27 तक रहेगा।
वर्ष 2024 मे कृष्ण जन्माष्टमी कब है (Janmashtami Date 2024)
शास्त्रों के अनुसार, श्रीकृष्ण का जन्म आज से 5251 साल पहले हुआ था। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को हुआ था। मथुरा में जन्माष्टमी का त्योहार 26 अगस्त को मनाया जाएगा.
जन्माष्टमी पर निबंध (Janmashtami Essay)
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की कथा (Krishna Janmashtami Story)
श्री कृष्ण वसुदेव तथा देवकी की आठवी संतान थे, परंतु श्री कृष्ण के जन्म के तुरंत बाद वसुदेव जी उन्हे कंस से सुरक्षित रखने के लिए अपने मित्र नन्द बाबा के घर छोड़ आये थे. इसलिए श्री कृष्ण का लालन पोषण नन्द बाबा तथा यशोदा मैया ने किया. उनका सारा बचपन गोकुल मे बीता. उन्होने अपनी बचपन की लीलाए गोकुल मे ही रचाई तथा बड़े होकर अपने मामा कंस का वध भी किया.
कृष्ण जन्माष्टमी भोग कैसे बनाये (Krishna Janmashtami Bhog)
श्री कृष्ण जी भोग स्वरूप माखन मिश्री, खीरा ककड़ी, पंचामृत तथा पंजरी का भोग लगाया जाता है. ध्यान रखिए श्री कृष्ण को लगाया हुआ भोग बिना तुलसी पत्र के स्वीकार नहीं होता है. इसलिए जब भी आप कृष्ण जी को भोग लगाए, उसमे तुलसी पत्र डालना ना भूले. श्री कृष्ण जी के भोग मे बने पंचामृत मे दूध, दही, शक्कर, घी तथा शहद मिला रहता है, तथा भोग लगते वक़्त इसमे तुलसी पत्र मिलाये जाते है.
श्री कृष्ण जी को जो पंजरी भोग मे लगाई जाती है वह भी साधारण पंजरी से अलग होती है. वैसे तो पंजरी आटे की बनती है, परंतु जो पंजरी कृष्ण जी को अर्पित करते है, उसे धनिये से बनाया जाता है. पंजरी बनाने के लिए पिसे हुये धनिये को थोड़ा सा घी डालकर सेका जाता है. और इसमे पिसी शक्कर मिलाई जाती है. लोग इसमे अपनी इच्छा अनुसार सूखे मेवे मिलाते है, कुछ लोग इसमे सोठ भी डालते है और फिर श्री कृष्ण को भोग लगाते है.
जन्माष्टमी बधाई (Janmashtmi Shayari)
धरती पर आये कृष्ण कन्हैया
किया जगत का उद्धार
ऐसी अलौकिक रची लीलाये
भक्त करते नमन बारंबार———————————————–
जन्माष्टमी पर कविता (Janmashtmi Kavita)
काली अँधेरी में था वो उजाला
भादो पक्ष की अष्टमी का नजारा
कारावास में किलकारी गूंजी
लीलाधर को नयी लीला सूजी
किया वसुदेव को आजादबरसते पानी में करवाया यमुना पार
खुद यमुना ने चरण स्पर्श कर
अपने जीवन का किया उद्धार
माता यशोदा के पुत्र बनकर
बढ़ाया जिसने गौकुल का मान
मटकी फोड़कर माखन चौर बन
यशोदा माँ की खाई फटकारगोपियों के संग थे रास रचैया
बने राधा के कृष्ण कन्हैया
मुरली की धुन पर चराते गैया
बनकर ग्वाला कृष्ण कन्हैया
तोड़ा घमंड इंद्र का जिसने
उठाकर गोवर्धन ऊँगली पर भैयाहुआ बाल लीलाओं का अंत
जाना पड़ा कर्तव्य पथ संग
पीछे छूटा प्रेम प्रसंग
नन्द बाबा मैया का संगकंस को मार किया मथुरा उद्धार
भाई के संग किया यादव कल्याण
बनकर शिष्य लिया व्यवहारिक ज्ञान
संदीपनी गुरु सानिध्य में मिला सुदामा का साथ
निभाया सदा सखा संबंध
भले बने द्वारिका महाराजमहाभारत का बन सूत्र धार
किया भारत वर्ष का उद्धार
गीता का ज्ञान देकर
मनुष्य जीवन का किया उद्धार .FAQ
Q : कृष्ण जन्माष्टमी कब हैं?Ans : भादव मास की अष्टमी कृष्ण पक्ष
Q : भगवन कृष्ण के गुरु का नाम क्या हैं ?Ans : गुरु संदीपनी
Q : भगवन कृष्ण का जन्म स्थान कहा हैं ?Ans : गोकुल
Q : भगवन कृष्ण कहाँ बड़े हुये ?Ans : गोकुल
Q : कृष्ण कहाँ के राजा थे ?Ans : द्वारका
Q : भगवन कृष्ण के माता पिता का नाम क्या हैं ?Ans : वसुदेव देवकी
Q : भगवान कृष्ण के बड़े भाई का नाम क्या हैं ?Ans : बलराम
जन्म अष्टमी का भारत मे उत्सव (How to Celebrate Janmashtmi)
वैसे तो पूरे भारत मे श्री कृष्ण जन्म उत्सव बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है, परंतु गोकुल, मथुरा, वृन्दावन श्री कृष्ण की लीलाओ के प्रमुख स्थान थे. इसलिए यहा पर इस दिन का उल्लास देखने लायक होता है. मंदिरो मे पूजा अर्चना, मंत्रो उच्चार, भजन कीर्तन किए जाते है. इस दिन मंदिरो की साज सज्जा भी देखने लायक होती है. श्री कृष्ण के भक्त भी यही चाहते है, इस दिन कान्हा के दर्शन इन जगहो पर हो जाये.
महाराष्ट्र के मुंबई तथा पुणे जन्माष्टमी पर अपने विशेष दही हांडी उत्सव को लेकर मशहूर है. तथा यहा इस दिन होने वाली दही हांडी प्रतियोगिता मे दी गयी इनाम की राशी आकर्षण का केंद्र है. यह ईनाम की राशि ही है, जिसके कारण यहा पर दूर दूर से आई मंडलियों का उत्साह देखते ही बनता है. यहा पर बंधी दही की हांडी को फोड़ने के लिए मंडलीया कई दिनो से तैयारियो मे जुट जाती है, तथा कई लड़को का समूह इस दिन एक के उप्पर एक चढकर इसे फोड़ने का प्रयास करता है, तथा जो लड़का सबसे उप्पर होता है तथा दही की हांडी को फोड़ता है उसे गोविंदा कहकर पुकारा जाता है. जैसे ही गोविंदा दही हांडी फोड़ता है, उसमे भरा माखन सारी मंडली पर गिरता है और उस जगह एक अलग ही माहोल बन जाता है.
गुजरात मे द्वारिका जहा कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने अपना राज्य स्थापित किया था. वहा जन्माष्टमी का उत्सव वहा के मशहूर मंदिर मे विशेष पूजा अर्चना करके तथा दर्शन करके मनाया जाता है . तो जम्मू मे इस दिन पतंग उड़ाने का रिवाज है.
उड़ीसा, पूरी तथा बंगाल मे इसदिन रात्री मे पूजा अर्चना की जाती है, तथा दूसरे दिन नन्द उत्सव मनाया जाता है. इस दिन लोग नाचते गाते तथा कीर्तन करते है. नन्द उत्सव के दिन यहा के लोग तरह तरह के पकवान बनाते है, तथा अपना वृत/उपवास तोड़ते है. वही दक्षिण मे इसे गोकुल अष्टमी नाम दिया गया है, तथा वहा भी इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना की जाती है. इसी प्रकार सभी स्थानो की अपनी अलग पूजा अर्चना की विधिया है. परंतु अगर मध्य भारत की बात की जाए, तो वहा पर मध्य मे होने के कारण हर तरफ की प्रथाओ का अनुसरण किया जाता है, तथा कृष्ण जन्म, भजन कीर्तन, मंदिरो मे विशेष पूजन साज सज्जा तथा दही हांडी सारी प्रथाये अच्छी तरह से निभाई जाती है.
Krishna Janmashtami or Gokulashtami Muhurat
निशिता पूजा समय | 24:03+ से 24:49+ |
अवधि | 46 मिनट |
आधी रात का समय | 24:26+ |
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