भाग 20 संविधान का संशोधन – (Article 368)
भारतीय संविधान का भाग 20, जिसमें अनुच्छेद 368 शामिल है, संविधान संशोधन की प्रक्रिया को परिभाषित करता है। यह अनुच्छेद संसद को संविधान के किसी भी प्रावधान को जोड़ने, बदलने या हटाने की शक्ति प्रदान करता है। संशोधन प्रक्रिया जटिल है और इसमें विभिन्न प्रकार के संशोधनों के लिए अलग-अलग प्रक्रियाएँ हैं।
संशोधन के प्रकार और प्रक्रिया
(Types and process of amendment) संविधान संशोधन मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं:
- साधारण बहुमत द्वारा संशोधन (Amendment by simple majority) कुछ प्रावधानों को संसद के दोनों सदनों में साधारण बहुमत (उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का बहुमत) द्वारा संशोधित किया जा सकता है। इन प्रावधानों में नए राज्यों का गठन, राज्यसभा में राज्यों का प्रतिनिधित्व, और संघ और राज्य सूचियों में विषयों का आवंटन आदि शामिल हैं।
- विशेष बहुमत द्वारा संशोधन (Amendment by special majority)अधिकांश संवैधानिक प्रावधानों को संशोधित करने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है। इसमें प्रत्येक सदन के कुल सदस्यता का बहुमत और उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत शामिल है। इस श्रेणी में मौलिक अधिकार, नीति निर्देशक तत्व, राष्ट्रपति के चुनाव, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय, और संसदीय प्रक्रियाएं आदि शामिल हैं।
- विशेष बहुमत और राज्यों की पुष्टि द्वारा संशोधन(Amendment by special majority and confirmation by states) कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों को संशोधित करने के लिए विशेष बहुमत के साथ-साथ कम से कम आधे राज्यों के विधानमंडलों द्वारा अनुसमर्थन की भी आवश्यकता होती है। इन प्रावधानों में राष्ट्रपति के चुनाव, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय, संघ और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण, और संविधान संशोधन की प्रक्रिया शामिल है।
संविधान संशोधन की सीमाएं
(Limitations of constitutional amendment) हालांकि संविधान संशोधन की शक्ति व्यापक है, लेकिन यह पूर्ण नहीं है। केशवानंद भारती मामले (1973) में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संसद संविधान के ‘बुनियादी ढांचे’ को संशोधित नहीं कर सकती है। ‘बुनियादी ढांचा’ एक विकसित अवधारणा है और इसमें संविधान के मूलभूत मूल्य और सिद्धांत शामिल हैं, जैसे कि न्यायिक समीक्षा, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद, लोकतंत्र, और मौलिक अधिकारों का मूल ढांचा।
महत्व (Importance)
संविधान संशोधन की प्रक्रिया भारतीय संविधान को गतिशील और बदलते समय के साथ प्रासंगिक बनाए रखने के लिए आवश्यक है। यह संविधान को देश की बदलती जरूरतों और आकांक्षाओं के अनुसार ढालने की अनुमति देता है।
निष्कर्ष (conclusion)
अनुच्छेद 368 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो संविधान संशोधन की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। यह प्रक्रिया जटिल है और इसमें विभिन्न प्रकार के संशोधनों के लिए अलग-अलग आवश्यकताएं हैं। ‘बुनियादी ढांचे’ का सिद्धांत संविधान संशोधन की शक्ति पर एक महत्वपूर्ण सीमा के रूप में कार्य करता है और संविधान के मूल मूल्यों और सिद्धांतों की रक्षा करता है।
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