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भगत सिंह की जीवनी, निबंध | Amar Shaheed Bhagat Singh Biography In Hindi

Amar Shaheed Bhagat Singh / अमर शहीद सरदार भगत सिंह भारत के प्रमुख क्रांतिकारियों में एक थे। भगत सिंह ने देश की आज़ादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया, वह आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श है। भगत सिंह अपने देश के लिये ही जीये और उसी के लिए शहीद भी हो गये। मात्र 23 साल की उम्र में इन्होंने अपने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

भगत सिंह का संक्षिप्त परिचय – Bhagat Singh Biography In Hindi

पूरा नामशहीद-ए-आज़म अमर शहीद सरदार भगत सिंह (Bhagat Singh)
अन्य नाम भागां वाला
जन्म दिनांक28 सितंबर, 1907 लायलपुर, पंजाब
मृत्यु दिनांक23 मार्च, 1931 ई. लाहौर, पंजाब
पिता का नामसरदार किशन सिंह
माता का नामविद्यावती कौर
राष्ट्रीयताभारतीय
आंदोलनभारतीय स्वतंत्रता संग्राम
प्रमुख संगठननौजवान भारत सभा, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन
शिक्षाबारहवीं
जेल यात्राअसेम्बली बमकाण्ड (8 अप्रैल, 1929)

भारत की आजादी की लड़ाई के समय भगत सिंह सभी नौजवानों के लिए यूथ आइकॉन थे, जो उन्हें देश के लिए आगे आने को प्रोत्साहित करते थे। भगतसिंह संधु जाट सिक्ख थे वे देश की आज़ादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया, वह भुलाया नहीं जा सकता।

इन्होंने केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें 23 मार्च 1931 को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। सारे देश ने उनके बलिदान को बड़ी गम्भीरता से याद किया। पहले लाहौर में साण्डर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय असेम्बली में चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। भगत सिंह को समाजवादी,वामपंथी और मार्क्सवादी विचारधारा में रुचि थी।

प्रारंभिक जीवन –

सरदार भगत सिंह का नाम अमर शहीदों में सबसे प्रमुख रूप से लिया जाता है। उनका जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था (जो अब पाकिस्तान में है) उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलाँ है जो पंजाब, भारत में है वे भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था।

यह एक सिख परिवार था जिसने आर्य समाज के विचार को अपना लिया था। उनके परिवार पर आर्य समाज व महर्षि दयानन्द की विचारधारा का गहरा प्रभाव था। भगत सिंह के जन्म के समय उनके पिता ‘सरदार किशन सिंह’ एवं उनके दो चाचा ‘अजीतसिंह’ तथा ‘स्वर्णसिंह’अंग्रेजों के खिलाफ होने के कारण जेल में बंद थे। जिस दिन भगत सिंह पैदा हुए उनके पिता एवं चाचा को जेल से रिहा किया गया। इस शुभ घड़ी के अवसर पर भगतसिंह के घर में खुशी और भी बढ़ गई थी।

भगतसिंह के जन्म के बाद उनकी दादी ने उनका नाम ‘भागो वाला’रखा था। जिसका मतलब होता है ‘अच्छे भाग्य वाला’। बाद में उन्हें ‘भगतसिंह’ कहा जाने लगा। वह 14 वर्ष की आयु से ही पंजाब की क्रांतिकारी संस्थाओं में कार्य करने लगे थे। डी.ए.वी. स्कूल से उन्होंने नौवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की।

भगत सिंह की क्रांतिकारी जीवन :- Bhagat Singh Life History

13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। उनका मन इस अमानवीय कृत्य को देख देश को स्वतंत्र करवाने की सोचने लगा। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिये नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी।

काकोरी काण्ड में राम प्रसाद ‘बिस्मिल’सहित 4 क्रान्तिकारियों को फाँसी व 16 अन्य को कारावास की सजाओं से भगत सिंह इतने क्रोधित हुए की पण्डित चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन से जुड गये और उसे एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन। इस संगठन का उद्देश्य सेवा, त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले नवयुवक तैयार करना था। भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसम्बर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अधिकारी जे० पी० सांडर्स को मारा था। इस कार्रवाई में क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी।

लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिये क्रान्तिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने वर्तमान नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेण्ट्रल एसेम्बली के सभागार संसद भवन में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को भागने के लिये बम और पर्चे फेंके थे। बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी। और उन्हें 116 दिनों की जेल भी हुई थी। भगत सिंह को महात्मा गांधी की अहिंसा पर भरोसा नही था। 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। और मरते वक्त भी उन्हीने फाँसी के फंदे को चूमकर मौत का ख़ुशी से स्वागत किया था।

फाँसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए। कहा जाता है कि जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- “ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।” फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले – “ठीक है अब चलो।” फाँसी पर जाते समय वे तीनों भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव मस्ती से गा रहे थे –

” मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे;
मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला।।”

उन्होंने अंग्रेज सरकार को एक पत्र भी लिखा, जिसमें कहा गया था कि उन्हें अंग्रेज़ी सरकार के ख़िलाफ़ भारतीयों के युद्ध का प्रतीक एक युद्धबन्दी समझा जाये तथा फाँसी देने के बजाय गोली से उड़ा दिया जाये। फाँसी के पहले 3 मार्च को अपने भाई कुलतार को भेजे एक पत्र में भगत सिंह ने लिखा था –

“उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है?
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है?
दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें।
सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।।”

इन जोशीली पंक्तियों से उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है। चन्द्रशेखर आजाद से पहली मुलाकात के समय जलती हुई मोमबती पर हाथ रखकर उन्होंने कसम खायी थी कि उनकी जिन्दगी देश पर ही कुर्बान होगी और उन्होंने अपनी वह कसम पूरी कर दिखायी।

भगतसिंह को हिन्दी, उर्दू, पंजाबी तथा अंग्रेजी के अलावा बांग्ला भी आती थी जो उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से सीखी थी। जेल के दिनों में उनके लिखे खतों व लेखों से उनके विचारों का अंदाजा लगता है। उन्होंने भारतीय समाज में भाषा,जाति और धर्म के कारण आई दूरियों पर दुख व्यक्त किया था। उन्होंने समाज के कमजोर वर्ग पर किसी भारतीय के प्रहार को भी उसी सख्ती से सोचा जितना कि किसी अंग्रेज के द्वारा किए गए अत्याचार को। उनका विश्वास था कि उनकी शहादत से भारतीय जनता और उग्र हो जाएगी, लेकिन जबतक वह जिंदा रहेंगे ऐसा नहीं हो पाएगा। इसी कारण उन्होंने मौत की सजा सुनाने के बाद भी माफीनामा लिखने से साफ मना कर दिया था।

एक नजर में भगत सिंह का इतिहास – Bhagat Singh History

1919वर्ष 1919 से लगाये गये ‘शासन सुधार अधिनियमों’ की जांच के लिए फ़रवरी 1928 में ‘साइमन कमीशन’ मुम्बई पहुँचा। पूरे भारत देश में इसका व्यापक विरोध हुआ।
1926भगतसिंह ने लाहौर में ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन किया । यह सभा धर्मनिरपेक्ष संस्था थी।
1927दशहरे वाले दिन छल से भगतसिंह को गिरफ़्तार कर लिया गया। झूठा मुक़दमा चला किन्तु वे भगतसिंह पर आरोप सिद्ध नहीं कर पाए, मजबूरन भगतसिंह को छोड़ना पड़ा ।
1927‘काकोरी केस’ में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशनसिंह को फांसी दे दी गई ।
सितंबर, 1928क्रांतिकारियों की बैठक दिल्ली के फिरोजशाह के खंडहरों में हुई, जिसमें भगतसिंह के परामर्श पर ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ का नाम बदलकर ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन’ कर दिया गया ।
30 अक्टूबर, 1928कमीशन लाहौर पहुँचा। लाला लाजपत राय के नेतृत्व में कमीशन के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुआ। जिसमें लाला लाजपतराय पर लाठी बरसायी गयीं। वे ख़ून से लहूलुहान हो गए। भगतसिंह ने यह सब अपनी आँखों से देखा।
17 नवम्बर, 1928लाला जी का देहान्त हो गया। भगतसिंह बदला लेने के लिए तत्पर हो गए। लाला लाजपतराय की हत्या का बदला लेने के लिए ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ ने भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, आज़ाद और जयगोपाल को यह कार्य दिया। क्रांतिकारियों ने साण्डर्स को मारकर लालाजी की मौत का बदला लिया।
8 अप्रैल, 1929भगतसिंह ने निश्चित समय पर असेम्बली में बम फेंका। दोनों ने नारा लगाया ‘इन्कलाब ज़िन्दाबाद’… ,अनेक पर्चे भी फेंके, जिनमें जनता का रोष प्रकट किया गया था। बम फेंककर इन्होंने स्वयं को गिरफ़्तार कराया। अपनी आवाज़ जनता तक पहुँचाने के लिए अपने मुक़दमे की पैरवी उन्होंने खुद की।
7 मई, 1929भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के विरुद्ध अदालत का नाटक शुरू हुआ ।
6 जून, 1929भगतसिंह ने अपने पक्ष में वक्तव्य दिया, जिसमें भगतसिंह ने स्वतंत्रता, साम्राज्यवाद, क्रांति पर विचार रखे और क्रांतिकारियों के विचार सारी दुनिया के सामने आये।
12 जून, 1929सेशन जज ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत आजीवन कारावास की सज़ा दी। इन्होंने सेशन जज के निर्णय के विरुद्ध लाहौर हाइकोर्ट में अपील की। यहाँ भगतसिंह ने पुन: अपना भाषण दिया ।
13 जनवरी, 1930हाईकोर्ट ने सेशन जज के निर्णय को मान्य ठहराया। इनके मुक़दमे को ट्रिब्यूनल के हवाले कर दिया।
5 मई, 1930पुंछ हाउस, लाहौर में मुक़दमे की सुनवाई शुरू की गई। आज़ाद ने भगतसिंह को जेल से छुड़ाने की योजना भी बनाई।
28 मई, 1930भगवतीचरण बोहरा बम का परीक्षण करते समय घायल हो गए। उनकी मृत्यु हो जाने से यह योजना सफल नहीं हो सकी। अदालत की कार्रवाई लगभग तीन महीने तक चलती रही ।
मई 1930‘नौजवान भारत सभा’ को गैर-क़ानूनी घोषित कर दिया गया।
26 अगस्त, 1930अदालत ने भगतसिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 तथा 6 एफ तथा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 120 के अंतर्गत अपराधी सिद्ध किया।
7 अक्तूबर, 193068 पृष्ठों का निर्णय दिया, जिसमें भगतसिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सज़ा दी गई। लाहौर में धारा 144 लगा दी गई ।
नवम्बर 1930प्रिवी परिषद में अपील दायर की गई परन्तु यह अपील 10 जनवरी, 1931 को रद्द कर दी गई। प्रिवी परिषद में अपील रद्द किए जाने पर भारत में ही नहीं, विदेशों में भी लोगों ने इसके विरुद्ध आवाज़ उठाई ।
24 मार्च, 1931फाँसी का समय प्रात:काल 24 मार्च, 1931 निर्धारित हुआ था।
23 मार्च, 1931सरकार ने 23 मार्च को सायंकाल 7.33 बजे, उन्हें एक दिन पहले ही प्रात:काल की जगह संध्या समय तीनों देशभक्त क्रांतिकारियों को एक साथ फाँसी दी। भगतसिंह तथा उनके साथियों की शहादत की खबर से सारा देश शोक के सागर में डूब चुका था। मुम्बई, मद्रास तथा कलकत्ता जैसे महानगरों का माहौल चिन्तनीय हो उठा। भारत के ही नहीं विदेशी अखबारों ने भी अंग्रेज़ सरकार के इस कृत्य की बहुत आलोचनाएं कीं।

भगत सिंह पर निबंध (Bhagat Singh Essay in Hindi)

भगत सिंह पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द)

परिचय

कहते हैं ‘पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं’ भगत सिंह के बचपन के कारनामों को देख कर लोगों को यह प्रतीत होने लगा था की वह वीर, धीर और निर्भीक हैं। भगत सिंह के जन्म के समय पर उनके पिता “सरदार किशन सिंह” व उनके दोनों चाचा “सरदार अजित सिंह” तथा “सरदार स्वर्ण सिंह” ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ होने के वजह से जेल में बंद थे।

भगत सिंह की शिक्षा दीक्षा

भगत सिंह का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के लायलपुर, बंगा गांव में हुआ था। उनका परिवार स्वामी दयानंद के विचारधारा से अत्यधिक प्रभावित था। भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल में हुई। प्राथमिक शिक्षा के पूर्ण होने के पश्चात 1916-17 में उनका दाखिला लाहौर के डीएवी स्कूल में करा दिया गया। भगतसिंह का संबंध देशभक्त परिवार से था वह शूरवीरों की कहानियां सुन कर बड़े हुए थे।

आजादी के लिए संघर्ष और शहादत

विद्यालय में उनका संपर्क लाला लाजपत राय तथा अंबा प्रसाद जैसे क्रांतिवीरों सें हुआ। उनकी संगति में भगत सिंह के अंदर की शांत ज्वालामुखी सक्रिय अवस्था में आ रही थी और इन सब के मध्य 1920 में हो रहे गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भगत सिंह में देशभक्ति को चरम पर पहुँचा दिया। 13 अप्रैल 1919, पंजाब में स्वर्ण मंदिर के समीप जलियांवाला बाग नामक स्थान पर बैसाखी के दिन जनरल डायर(ब्रिटिश ऑफिसर) द्वारा अंधाधुन गोलियां चला कर हजारों लोगों की हत्या कर दी गई तथा अनेक लोगों को घायल कर दिया गया। इस घटना का भगत सिंह पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा एवं यही घटना ही भारत में ब्रिटिश सरकार के पतन की शुरुआत का कारण बना। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह और उनके दोनों साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई।

निष्कर्ष

23 वर्षीय नौजवान भगत सिंह ने जीते जी तथा मरने के बाद भी अपना सब कुछ देश के नाम कर दिया। उनकी जीवनी पढ़ते समय लोगों में जोश का उत्पन्न होना उनके साहस के चरम को दर्शाता है। भगत सिंह के बलिदान और त्याग को पहचान कर हमें उनसे सीख लेते हुए देश की प्रगति में योगदान देना चाहिए।

भगत सिंह पर निबंध – 2 (400 शब्द)

परिचय

निःसंदेह भगत सिंह का नाम भारत के क्रांतिकारियों के सूची में उच्च शिखर पर विद्यमान है। उन्होंने केवल जीवित रहते ही नहीं अपितु शहीद होने के बाद भी देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया तथा अपने शौर्य से अनेक नौजवानों को देश भक्ति के लिए प्रेरित किया है।

भगत सिंह को लोग क्यों साम्यवाद तथा नास्तिक कहने लगे?

भगत सिंह उन युवाओं में शामिल थे जो देश की आज़ादी के लिए गांधीवाद विचारधारा में नहीं बल्कि लाल, बाल, पाल के पद चिन्हों पर चलने में विश्वास रखते थे। उन्होंने उन लोगों से हाथ मिलाया जो आज़ादी हेतु अहिंसा का नहीं बल्कि ताकत का प्रयोग करते थे। इस वजह से लोग उन्हें साम्यवाद, नास्तिक तथा समाजवादी कहने लगे।

प्रमुख संगठन जिनसे भगत सिंह जुड़े

सर्वप्रथम भगत सिंह ने अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोड़कर भारत की आज़ादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की। तत्पश्चात राम प्रसाद बिस्मिल के फांसी से वह इतने क्रोधित हुए की चद्रशेखर आजाद के साथ मिल कर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए।

लाला लाजपत राय के मृत्यु का प्रतिशोध

साइमन कमीशन के भारत आने के वजह से पूरे देश में विरोध प्रदर्शन प्रारंभ हो चुका था। 30 अक्टूबर 1928 के दिन एक दुखद घटना घटित हुई जिसमें लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध कर रहें युवाओं तथा लाला लाजपत राय की लाठी से पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। उन्होंने अपने अंतिम समय में भाषण में कहा था- “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के कफ़न की कील बनेगी” और ऐसा ही हुआ। इस दुर्घटना से भगत सिंह को इतना आहात पहुंचा की उन्होंने चद्रशेखर आज़ाद, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर लाला लाजपत राय के मृत्यु के ठीक एक महिने बाद ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया।

केंद्रीय असेंबली में बम फेंकना

8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश सरकार के क्रूरता का बदला केंद्रीय असेम्बली पर बम फेंक कर लिया तथा गिरफ़्तारी के बाद गांधी जी समेत अन्य लोगों के अनेक आग्रह करने पर भी उन्होंने मांफी मांगने से इनकार कर दिया। 6 जून 1929 दिल्ली के सेशन जज लियोनॉर्ड मिडिल्टन के अदालत में भगत सिंह ने अपना ऐतिहासिक बयान दिया और उन्हें राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फांसी की सजा सुनाई गई।

निष्कर्ष

भगत सिंह के साहस का अनुमान हम उनके आखरी बयान से लगा सकते हैं जिसमें उन्होंने साफ तौर पर केंद्रीय असेंबली पर बम फेंकने की बात को कबूला और उन्होंने ऐसा क्यों किया यह सरेआम सबके समक्ष, लोगों के भीतर की ज्वाला को जगाने के लिए बताया

Bhagat Singh par Nibandh– 3 (500 शब्द)

परिचय

भगत सिंह वीर क्रांतिकारी के साथ-साथ एक अच्छे पाठक, वक्ता तथा लेखक भी थे। उनकी प्रमुख रचनाएँ- ‘एक शहीद की जेल नोटबुक’, ‘सरदार भगत सिंह’, ‘पत्र और दस्तावेज़’, ‘भगत सिंह के सम्पूर्ण दस्तावेज’ तथा बहुचर्चित रचना ‘द पीपल में प्रकाशित होने वाला लेख – मैं नास्तिक क्यों हूँ’ हैं।

भगत सिंह की बहुचर्चित लेख “मैं नास्तिक क्यों हूँ”

27 सितम्बर 1931 में द पीपल नामक अखबार में शहीद भगत सिंह का ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ लेख प्रकाशित हुआ। समाजिक कुरीति, समस्या तथा मासूम लोगों के शोषण से दुखी होकर इस लेख के माध्यम से उन्होंने ईश्वर के अस्तित्व पर तर्कपूर्ण सवाल खड़े किए। यह लेख उनके प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है।

शहीद भगत सिंह के पत्र

“उन्हें यह फ़िक्र है हरदम,

नयी तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है?

हमें यह शौक है देखें,

सितम की इम्तहा क्या है?”

शहीद भगत सिंह ने जेल से अपने छोटे भाई कुलतार सिंह के नाम एक ख़त लिखा उसमें इस कविता की चार लाइन लिखी। यह कविता उनकी रचना नहीं है पर उनके हृदय के करीब थी। उनके पत्र में ब्रिटिश सरकार के अतिरिक्त समाज में रंग, भाषा तथा क्षेत्र के अधार पर लोगों मे व्याप्त भेद-भाव के प्रति चिंता पाया जाता था।

भगत सिंह की फांसी रुकवाने के प्रयास

भगत सिंह को धारा 129, 302 तथा विस्फोट पदार्थ अधिनियम 4 और 6 एफ तथा अन्य कई धाराओं के तहत भारतीय दण्ड सहिंता के आधार पर राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फांसी की सजा सुनायी गई। उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष पं. मदन मोहन मालवीय ने 14 फरवरी 1931 को वायसराय के समक्ष भगत सिंह के माफ़ी का आग्रह किया पर इस माफ़ीनामे पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया। इसके बाद 17 फरवरी 1931 को गांधी जी ने भगत सिंह की माफ़ी के लिए वायसराय से मुलाकात की पर इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ। यह सब भगत सिंह के इच्छा के विरूद्ध हो रहा था, उनका कहना था “इन्कलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मज़बूत होता है, अदालत में अपिल से नहीं”।

भगत सिंह की फांसी तथा उनका दाह संस्कार

23 मार्च 1931 की शाम को भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव को फांसी दे दी गई। कहा जाता है वह तीनों फांसी तक जाते समय ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ गीत मस्ती में गाते हुए जा रहे थे। फांसी के वजह से लोग कहीं किसी प्रकार के आन्दोलन पर न उतर आए इसके भय से अंग्रेजों ने उनके शरीर के छोटे टुकड़े कर बोरियों में भर दूर ले जाकर मिट्टी के तेल से जला दिया। लोगों की भीड़ को आते देख अंग्रेजों ने उनकी लाश को सतलुज नदी में फेंक दिया। फिर लोगों ने उनके शरीर के टुकड़ों से उनकी पहचान कर उनका विधिवत दाह संस्कार किया।

यदि शहीद भगत सिंह को फांसी नहीं होती तो क्या होता?

शहीद भगत सिंह के साथ बटुकेश्वर दत्त भी थे उन्हें काले पानी की सजा सुनायी गई थी। देश की आजादी के उपरांत उन्हें भी आज़ाद कर दिया गया पर उसके बाद क्या? उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने के सबूत मांगे गए और अंत में जाकर वह किसी सिगरेट की कम्पनी में सामान्य वेतन पर नौकरी करने लगे। फिर यह क्यों नहीं माना जा सकता है की भगत सिंह को यदि फांसी नहीं दी गई होती तो लोग उनका इतना सम्मान कभी न करते।

निष्कर्ष

जिस वक्त शहीद भगत सिंह को फांसी दी गई तब वह सिर्फ 23 वर्ष के थे। उन्होंने स्वयं से पहले सदैव देश तथा देशवासियों को रखा। संभवतः इसीलिए उनके बलिदान के इतने वर्षों पश्चात भी वह हम सब में जीवित

FAQs: भगत सिंह पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न.1 भगत सिंह का नारा क्या था?

उत्तर. अप्रैल 1929 में भगत सिंह द्वारा दिया गया नारा ‘इंकलाब जिंदाबाद’ था।

प्रश्न.2 भगत सिंह ने भारतीय राष्ट्रवादी युवा संगठन की स्थापना कब की?

उत्तर. भगत सिंह ने मार्च 1929 में भारतीय राष्ट्रवादी युवा संगठन की स्थापना की थी।

प्रश्न.3 भगत सिंह के गुरु कौन थे?

उत्तर. भगत सिंह के गुरु करतार सिंह सराभा थे और भगत सिंह हमेशा उनकी तस्वीर अपने साथ रखते थे।

प्रश्न.4 भारत की संसद में भगत सिंह की मूर्ति कब स्थापित की गई?

उत्तर. भारत की संसद में भगत सिंह की प्रतिमा 2008 में स्थापित की गई थी।

प्रश्न.5 भगत सिंह पर बनी पहली फिल्म का नाम क्या था?

उत्तर. 1954 में भगत सिंह पर बनी पहली फिल्म थी “शहीद-ए-आजाद भगत सिंह”।

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