GKPWALA.IN

Desire to know everything

कैसे टुटा पांडवों का अहंकार How the pandavas’ ego broke

कैसे टुटा पांडवों का अहंकार How the pandavas’ ego broke  महाभारत काल से जुडी कई कहानियाँ हैं जिनसे हमें कई तरह की शिक्षायें मिलती हैं |

मनुष्य हो या देवी देवता या कोई बलवान इस संसार में अभिमान सभी को गैरता हैं इससे वही निकल सकता हैं जो ज्ञानी के साथ – साथ विनम्र हो | महाभारत काल की एक कहानी जब पाँचों पांडव में से चार पांडव को अपने अभिमान के कारण मृत्युदंड का भागी बनना पड़ा |

जाने विस्तार से

Kaise Tuta Pandavo Ka Abhiman

कैसे टुटा पांडवों का अहंकार

जब पांडव वन विहार को निकले तब सभी पांडव वन के एक स्थान पर रुके सभी को प्यास लग रही थी तभी अनुज पांडव नकुल ने सभी भाईयों को विश्राम करने कहा और स्वयं पानी लेने चला गया |

समीप ही उसे एक निर्मल जल से भरा जलाशय दिखा जिसे देख वह तेजी से उसकी तरफ पानी लेने के लिए बड़ा तभी अचानक ही एक आकाशवाणी हुई जिसने नकुल को चेतावनी देते हुए कहा – हे पांडू पुत्र ! यह मेरा जलाशय हैं अगर इसका पानी पीना हैं तो तुम्हे मेरी जिज्ञासा को शांत करना होगा जिसके लिए तुम्हे मेरे कुछ प्रश्नों का उचित उत्तर देना होगा |अगर तुम मेरी बात नहीं मानोगे तो तुम्हे मृत्यु का भागी बनाना होगा | नकुल ने उसकी एक ना सुनी उसे अपने और अपने भाईयों की शक्ति पर बहुत अभिमान था | उसी अभिमान के चलते वो जलाशय का पानी पिता हैं और उसकी उसी वक्त मृत्यु हो जाती हैं | बहुत देर तक नकुल के वापस ना लौटने पर सहदेव उसकी खोज में निकलता हैं और सहदेव को भी आकाशवाणी सुनाई देती हैं लेकिन वह भी अभिमानस्वरूप मारा जाता हैं | क्रमश : अर्जुन और भीम का भी यही हाल होता हैं | एक के बाद एक चारों पांडवों की मृत्यु हो जाती हैं |

कुछ देर बाद जा कोई वापस नहीं लौटा तो युधिष्ठिर सबकी खोज में जलाशय के पास पहुँचे | भाईयों की ऐसी दशा देख वह बहुत चिंतिंत हुए और क्रदुन स्वर में सभी को पुकारने लगे | तब ही पुनः आकाशवाणी हुई और कहा मेरे कारण ही तुम्हारे भाईयों की मृत्यु हुई हैं | युधिष्ठिर ने विनम्रता से सवाल पूछने को कहा | उनके ऐसा कहते ही वहाँ यक्ष देवता आये और उन्होंने युधिष्ठिर से अपने प्रश्नों के उत्तर मांगे जिनका युधिष्ठिर ने सहजता से उनकी जिज्ञासा को शांत किया |

फलस्वरूप यक्ष देवता ने युधिष्ठिर को वरदान दिया कि वो अपने in भाईयों में से किसी एक के प्राण वापस ले सकते हो | युधिष्ठिर ने वरदान स्वरूप नकुल को माँगा | इस पर यक्ष देव ने अचंभित होकर पूछा तुमने नकुल के प्राण क्यूँ मांगे तुम्हे अर्जुन अथवा भीम में से किसी को चुनना था जो आजीवन तुम्हारी रक्षा करते | इस पर युधिष्ठिर ने कहा – हे यक्ष देव ! बिना तीन भाईयों के भी में इस संरक्षण का क्या करता | मैंने नकुल को इसलिए माँगा क्यूंकि वह माता मादरी का पुत्र हैं इस तरह मैं माता कुंती और नकुल माता माद्री का पुत्र होने से दोनों माताओं की एक- एक संतान जीवित रहती जिससे दोनों के कुल जीवित रहेंगे | इसलिये हे यक्ष देवता मुझे आप नकुल दे दीजिये |

युधिष्ठिर के इस धर्मपरायण स्वभाव से प्रसन्न होकर यक्ष देव सभी पांडवो को जीवित करते हैं | जिसके बाद पांडवो को अपने अभिमान पर लज्जा आती हैं |

श्री कृष्ण ने कहा हैं जो धर्म की रक्षा करते हैं धर्म सदैव उनकी रक्षा करता हैं | युधिष्ठिर के इसी स्वभाव के कारण सभी पांडवों को जीवनदान मिलता हैं |

इसलिए कहा जाता हैं जो किसी भी परिस्थती में धर्म का मार्ग नहीं छोड़ते उनका जीवन कभी गलत दिशा में नहीं जाता | वे कभी अवगुणों के भागी नहीं बनते | धर्म का रास्ता कठिन जरुर हैं लेकिन उस पर संतोष एवम न्याय मिलता हैं |अधर्मी को कभी संतोष नहीं मिलता | संतोषहीन जीवन जीने योग्य नहीं होता | अतः सदैव धर्म का पालन करें |

कैसे टुटा पांडवों का अहंकार इस कहानी से यह पता चलता हैं कि पांडव जैसे ज्ञानी भी अभिमानी हो जाते हैं | सच तो यही हैं कि ज्ञानी में भी ज्ञान और अपनी विद्या का अहंकार होता हैं लेकिन यह भाव उसे उसके गुणानुसार उचित फल नहीं देता |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Verified by MonsterInsights